Wednesday 24 January 2018

उत्तर- वैदिक काल विशेष


1- उत्तर- वैदिक आर्यो की राजनीतिक व्यवस्था राजतंत्र में परिवर्तित हो गई थी। इस समय राजा भूमि के एक क्षेत्र पर शासन करने लगे थे जिसे जनपद कहा जाता था।
2- राजा सेना रखने लगे थे एवं नौकर शाही का विकास भी हो गया था। राजाओं का राजा बनने की अवधारणा भी विकसित हो गई थी।
3- अधिकांश लेखों में अधिराज राजाधिराजसम्राट एवं ईरकट आदि अभिव्यक्त्िा उपयोग की गई है।
4- अथर्ववेद में ईरकट को सर्वोपरि संप्रभु माना गया है।
5- विधाता का पद पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था। तथापि सभा एवं समिति इस काल में भी व्यवस्था में रहें।
6- महिलाओं को सभा में उपस्थित होने का अधिकार समाप्त कर दिया गया था एवं इसमें अब ब्राहम्णों एवं श्रेष्ठों की प्रधान्ता थी।
7- राजा राजसूय यज्ञ किया करते थे जो उन्हे सर्वोच्च शक्ति प्रदान करने में सहायक होता था।
8- राजा अश्वमेघ यज्ञ किया करता था जिसका तात्पर्य एक ऐसे निर्विवाद नियंत्रण से है जहां शाही घोडा बीना किसी बाधा के दौड़ सके।
9- राजा अपने भाइयों के विरूध दौड़ में जीतने के लिए वाजपेय यज्ञ भी किया करते थे।
10- उसने एक कर प्रांरभ किया था जो एक अधिकारी को जमा कराया जाता था। इस अधिकारी को "संग्रहीत्री" कहा जाता था।
11- उत्तर वैदिक काल में कृषि मुख्य व्यवसाय हो गया थाएवं पशुपालन सहायक व्यवसाय।
12- शतपथ ब्राहम्ण में जुताई अनुष्ठानों के बारें में विस्तृत व्याख्या की गई है।
13- चावल (व्रिही) एवं गेहूँ (गोधूमा) उत्तर वैदिक आर्यो की मुख्य फसल बन चुकी थीहालांकि वे जौ की कृषि भी करते थे।

14- हल को सिरा एवं हल-रेखा को सीता कहा जाता था।
15- गाय का गोबर खाद्य के रूप में उपयोग किया जाता था।
16- वैदिक युग में लौह नामक धातु की उत्पत्ति हुई थी। इसे श्याम अयस एवं तांबे को लोहित अयस कहा जाता था।
17- बुनाई कार्य महिलाओं के लिए समिति था परन्तु यह वृहद् स्तर पर किया जाता था।
18- उत्तर-वैदिक काल के युग चार प्रकार के मिट्टी के बर्तनों के कार्य से परिचित थे यथा काले-लाल रंग के बर्तनकाले बर्तनचित्रित स्लेटी बर्तन एवं लाल रंग के बर्तन।
19- विनिमय का माध्यम गाय एवं कुछ प्रकार के आभूषण थे।
20- अथर्ववेद के अनुसार सूखा एवं भारी वर्षा कृषि के लिए संकट थे।
21- शिल्पकारों का समूह अस्तित्व में आ गया था। समूह के मुखिया को गिखिया को गिल्ड कहा जाता था।
22- उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवसाय पर आधारित न होकर जन्म पर आधारित होने लगे थे।
23- समाज चार वर्णों मे विभाजित हो गया था यथा-ब्राहम्णराजान्यास या क्षत्रियवैश्य एवं शुद्र।
24- उत्तर वैदिक आर्यो का विस्तार पंजाब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक थाजो गंगा- यमुना दो आब से आच्छादित था।
25- उन्होने पूर्वी क्षेत्र के घने वनों में प्रवेश किया उन्हे साफ करते हुए वर्तमान समय के बिहार राज्य में पहुँच गए।

व्यवसाय पर आधारित चार वर्ण
1. शिक्षक एवं संत – ब्राहम्ण
2. शासक एवं प्रशासक – क्षत्रिय
3. कृषकव्यापारीबैंककर्मी – वैश्य
4. कारीगर एवं श्रमिक – शुद्र


विवाह के प्रकार
 धर्म विवाह
1. ब्रहम विवाह – दो समान जातियों के बीच दहेज निषेध विवाह
2. दैव विवाह – पिता अपनी पुत्री को यज्ञ करने वाले संत को यज्ञ करने के एवज में देते थे।
3. अर्श विवाह – दुल्हन की कीमत के रूप में एक सांड व एक गाय लड़की के पिता को दिया जाता था।
4. प्रजाप्रत्य विवाह पिता अपनी पुत्री को बिना दहेज एवं बिना कोई कीमत के लिए देते थे।
 अधर्म विवाह
1. गंधर्व विवाह – एक प्रकार का प्रेम विवाह
2. असुर विवाह – दुल्हन को खरीद कर किया गया विवाह
3. राक्षस विवाह – लड़की का अपहरण कर उसकी इच्छाविरूद्ध उससे विवाह करना
4. पिशाच विवाह – जब लड़की सो रही होती है तो उससे जबरदस्ती करके उसको शराब पिलाकर पागल कर दिया जाता था तथा बाद में विवाह किया जाता था।
तीनों उच्च वर्ण उपनयन संस्कार के हकदार थे।
चतुर्थ या शुद्र वर्ण गायत्री मंत्र का जाप करने एवं उपनयन संस्कार से वंचित थे।
महिलाओं को समाज में निम्न स्थान प्राप्त थे।
गोत्र का प्रचलन उत्तर वैदिक काल में हुआ। गोत्र शब्द से तात्पर्य है एक ही पूर्वज के वंश लोगों ने जाति के बाहर विवाह करना प्रारंभ कर दिया था।
उत्तर वैदिक काल में चार आश्रम अस्तित्व में आए यथा ब्रहमचारी (शिष्य) ग्रहस्थ (ग्रहस्वामी) वानप्रस्थ (साधु) एवं सन्यासी (सांसारिक जीवन का पूरी तरह से त्याग)
संयुक्त परिवार एकल परिवार में परिवर्तित होने लगे थे जिसमें पुरूषों का प्रभुत्व था।

1- ऋग्वैदिक काल के दो प्रमुख देवों (इंद्र एवं अग्नि) ने अपनी भूत् पुर्व महत्वपूर्णता खो दी थी।
2- त्रिमूर्ति की अवधारणा उभरकर सामने आई जिसके तहत प्रजापति (विधाता)रूद्र (पशुओं के देव) एवं विष्णु (पालनहार व संरक्षक) अस्तित्व में आए।
3- उत्तर-वैदिक काल में मूर्तिपूजा के लक्षण दिखाई दिये।
4- पूशा जो मवेशियों की देखभाल करते थेशुदो के देवता के रूप में जाने गएयद्यापि ऋग्वेद काल में पशुपालन प्रमुख व्यवसाय था।
5- बलि इस काल में अति महत्पूर्ण हो गई थी। बलि में वृहत पैमाने पर पशुओं का वध किया जाता थाजिससे पशु संपदा का विनाश होता था।
6- ब्राहम्ण पुरोहिती ज्ञान एवं विशेषज्ञता के एकाधिकार का दावा करते थे।
7- इस समय उपनिषदों की रचना हो चुकी थी जिनमें प्रचलित अनुष्ठानों की आलोचना की गई।
8- उपनिषदों में इस बात पर ज़ोर दिया है कि वयक्ति को आत्मज्ञान होना चाहिए एवं आत्मा के साथ परमात्मा के संबंध को समझना आवश्यक है।

दर्शनशास्त्र  
1- सांख्य सभी छ: प्रणाली में से सबसे प्राचीन दर्शन शास्त्र है। यह 25 मूलतत्वों के बारें बताता हैजिनमें प्रकृति सभी तत्वों में से सर्वप्रमुख तत्व है।
2- योग संभवत: विश्व भर में सर्वप्रसिद्ध हिंदु दर्शनशास्त्र है।योग प्रणाली का प्रतिपादन पतंजलि द्वारा किया गया था। सांख्य प्रणाली का प्रतिपादन कपिल द्वारा किया गया था।
3- वैशेषिक विश्व का यर्थाथवादी विश्लेषणात्मक एवं उद्देश्यात्मक दर्शन शास्त्र है। इसने सभी वस्तुओं को पाँच तत्वों में वर्गीकृत किया हैयथा पृथ्वीजलवायुअग्नि एवं आकाश।
4- वैशेषिक का प्रतिपादन कणाद ऋषि ने किया।
5- न्याय दर्शन के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान के अधिग्रहण के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है।न्याय दर्शन के रचियता गौतम ऋषि है।
6- मीमांसा दर्शन व्यक्ति के कर्त्तव्यों के निर्धारण का अंतिम प्राधिकारी़ वेदों को मानता है।
7- यह दो भागों में वर्गीकृत है
*पूर्व मीमांसा – इसके प्रतिपादक जैमिनी है।
*उत्तर मीमांसा – इसका प्रतिपादन व्यास द्वारा किया गया।
1- धर्मअर्थकाम और मोक्ष चार पुरूषार्थ है।
2- ऋषि ऋणदेव ऋण एवं पितृ ऋण तीन प्रकार के ऋण हैं।
3- भूत यज्ञपितृ यज्ञदेव यज्ञअतिथि यज्ञ एवं ब्रहम यज्ञ पाँच प्रकार के यज्ञ होते थे।
4- वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत रामायण से ज्यादा प्राचीन ग्रंथ है।
5- पूर्व में महाभारत को जय संहिता कहा जाता था।
6- उसके बाद भारत एवं वर्तमान में इसे महाभारत कहा जाता है। इसमें एक लाख छंद है अत: इसे सतसहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।
1-व्रिही – चावल
2-उस्ता – उँट
3-सारभ – हाथी
4-दुहित्री – पुत्री
5-गोपा – राजा
6-चावण – लोहार
7-हिरण्यक – सुनार
8-गोविकारत्न – खेल एवं वनों का रखवाला
9-कुलाल – कुम्हार
10-व्रज पति – चारागाह भूमि के प्रभारी अधिकारी
11-संग्हीत्री – खजानची
12-गोधन – अतिथि