समास
छः प्रकार के होते हैं-
1. अव्ययीभाव
समास,
2. तत्पुरुष
समास
3. द्वन्द्व
समास
4.बहुब्रीहि
समास
5. द्विगु
समास
5. कर्म
धारय समास
1.अव्ययीभाव समास:
अव्ययीभाव
समास में प्रायः
(i)पहला
पद प्रधान होता है।
(ii) पहला
पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(वे
शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
(iii)यदि
एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह
प्रयुक्त हो, वहाँ
भी अव्ययीभाव
समास होता है।
(iv) संस्कृत
के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास होते हैं-
यथाशक्ति
= शक्ति के अनुसार।
यथाशीघ्र
= जितना शीघ्र हो
यथाक्रम
= क्रम के अनुसार
यथाविधि
= विधि के अनुसार
यथावसर
= अवसर के अनुसार
यथेच्छा
= इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन
= प्रत्येक दिन। दिन-दिन। हर दिन
प्रत्येक
= हर एक। एक-एक। प्रति एक
प्रत्यक्ष
= अक्षि के आगे
घर-घर
= प्रत्येक घर। हर घर। किसी भी घर को न छोड़कर
हाथों-हाथ
= एक हाथ से दूसरे हाथ तक। हाथ ही हाथ में
रातों-रात
= रात ही रात में
बीचों-बीच
= ठीक बीच में
साफ-साफ
= साफ के बाद साफ। बिल्कुल साफ
आमरण
= मरने तक। मरणपर्यन्त
आसमुद्र
= समुद्रपर्यन्त
भरपेट
= पेट भरकर
अनुकूल
= जैसा कूल है वैसा
यावज्जीवन
= जीवनपर्यन्त
निर्विवाद
= बिना विवाद के
दर
असल = असल में
बाकायदा
= कायदे के अनुसार
2.तत्पुरुष समास:
(i)तत्पुरुष
समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का
लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।
(ii) इसका
विग्रह करने पर कत्र्ता व सम्बोधन की विभक्तियों (ने, हे, ओ,अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा
विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते हैं।
जैसे
–
(क)
कर्म तत्पुरुष (को)
कृष्णार्पण
= कृष्ण को अर्पण
नेत्र
सुखद = नेत्रों को सुखद
वन-गमन
= वन को गमन
जेब
कतरा = जेब को कतरने वाला
प्राप्तोदक
= उदक को प्राप्त
(ख)
करण तत्पुरुष (से/के द्वारा)
ईश्वर-प्रदत्त
= ईश्वर से प्रदत्त
हस्त-लिखित
= हस्त (हाथ) से लिखित
तुलसीकृत
= तुलसी द्वारा रचित
दयार्द्र
= दया से आर्द्र
रत्न
जडि़त = रत्नों से जडि़त
(ग)
सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए)
हवन-सामग्री
= हवन के लिए सामग्री
विद्यालय
= विद्या के लिए आलय
गुरु-दक्षिणा
= गुरु के लिए दक्षिणा
बलि-पशु
= बलि के लिए पशु
(घ)
अपादान तत्पुरुष (से पृथक्)
ऋण-मुक्त
= ऋण से मुक्त
पदच्युत
= पद से च्युत
मार्ग
भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
धर्म-विमुख
= धर्म से विमुख
देश-निकाला
= देश से निकाला
(च)
सम्बन्ध तत्पुरुष (का, के, की)
मन्त्रि-परिषद्
= मन्त्रियों की परिषद्
प्रेम-सागर
= प्रेम का सागर
राजमाता
= राजा की माता
अमचूर
=आम का चूर्ण
रामचरित
= राम का चरित
(छ)
अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर)
वनवास
= वन में वास
जीवदया
= जीवों पर दया
ध्यान-मग्न
= ध्यान में मग्न
घुड़सवार
= घोड़े पर सवार
घृतान्न
= घी में पक्का अन्न
कवि
पुंगव = कवियों में श्रेष्ठ
3. द्वन्द्व समास
(i)द्वन्द्व
समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
(ii) दोनों
पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं।
(iii)इसका
विग्रह करने पर ‘और’, अथवा ‘या’ का प्रयोग होता है।
माता-पिता
= माता और पिता
दाल-रोटी
= दाल और रोटी
पाप-पुण्य
= पाप या पुण्य/पाप और पुण्य
अन्न-जल
= अन्न और जल
जलवायु
= जल और वायु
फल-फूल
= फल और फूल
भला-बुरा
= भला या बुरा
रुपया-पैसा
= रुपया और पैसा
अपना-पराया
= अपना या पराया
नील-लोहित
= नीला और लोहित (लाल)
धर्माधर्म
= धर्म या अधर्म
सुरासुर
= सुर या असुर/सुर और असुर
शीतोष्ण
= शीत या उष्ण
यशापयश
= यश या अपयश
शीतातप
= शीत या आतप
शस्त्रास्त्र
= शस्त्र और अस्त्र
कृष्णार्जुन
= कृष्ण और अर्जुन
4. बहुब्रीहि समास
(i)बहुब्रीहि
समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
(ii) इसमें
प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
(iii)इसका
विग्रह करने पर ‘वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह आदि आते हैं।
गजानन
= गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)