Monday 22 January 2018

मौर्य वंश


- पुरालेखीय स्त्रोत, साहित्यिक स्त्रोत विदेशी स्त्रोत एवं पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त स्त्रोंतो द्वारा मौर्य वंश के विषय में ज्ञात होता है।
- कुछ बौद्ध लेख यथा जातक कथाएँ, दिव्यावदान एवं अशोकावदान।
- श्रीलंकाई लेख महावंश एवं दीपवंश भी मौर्य साम्राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण लेख है।
- पुराणों में भी मौर्यों की चर्चा की गई है।
- कौटिल्य द्वारा शास्त्रीय संस्कृत में लिखी गई अर्थशास्त्र भी एक महत्पूर्ण स्त्रोत है। यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था अथवा शासन प्रबंध से सम्बंधित पुस्तक है।
- मेगस्थनीज़ द्वारा संकलित इण्डिका भी एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। यह लगभग नष्ट हो चुकी है एवं जिसे विभिन्न युनानी लेखकों की टिप्पणीयों द्वारा पुनर्जीवित किया गया है।
- विशाखदत द्वारा संस्कृत में रचित मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त द्वारा नंद वंश को समाप्त करने के बारे में चर्चा की गई है। विशाखदत उत्तर वैदिक काल के समय का संकलन है।
- सोमवेद की कथासरितसागर, क्षेमेंद्र की वृहद्कथा मंजरी एवं कल्हण की रजतरंगिनी भी मौर्य वंश पर कुछ प्रकाश डालती है।
चंद्रगुप्त मौर्य
- चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (चाणक्य) की सहायता से मौर्य वंश की स्थापना की।
- उसने साम्राज्य के पूर्वी भाग में सेल्युकस निकेटर को पराजित किया जो सिकंदर को हरा वहां का सम्राट बना था।
- सेल्युकस ने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था एवं इसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारत की तत्कालीन स्थिति का वर्णन किया है।
- युनानी साहित्यों में चंद्रगुप्त को सेन्ड्रोकोट्टस कहा गया है।
- जुनागढ प्रशास्ति के अनुसार चंद्रगुप्त ने सौराष्ट्र में सिचाई कार्य के लिए एक झील का निर्माण करवाया जिसे सुदर्शन झील नाम दिया ।
- जीवन के अंतिम दिनों में उसने जैनधर्म को अपना लिया एक भद्रबाहू के साथ दक्षिण भारत की तरफ चला गया।उसने स्वयं को भूखा रख श्रवनबेलागोला (मैसूर) में प्राण त्याग दिये ।
बिंदुसार 297-272 ई्.पू.
- चंद्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्र बिंदुसार गद्दी पर बैठा।
- बिंदुसार को अमित्रघात कहा जाता है अर्थात "दुश्मनों का संहार करने वाला"।
- बिंदुसार ने अपने ज्येष्ठ पुत्र सुमन (सुशिम) को दक्षशिला का राज्यपाल एवं अशोक को उज्जैन का राज्यपाल बनाया।
- उसने दक्षिण भारत के कर्नाटक तक अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- बिंदुसार ने आजीवक सम्प्रदाय की पालना की।
- बिंदुसार की मृत्यु के बाद राजगद्दी के लिए अगले चार वर्षो तक संघर्ष चला एवं अशोक अपने छ: भाईयों का वध कर 272 ई्.पू. में सिहासन पर बैठा।
अशोक 272-232 ई.पू.
- अशोक की माता का नाम शुभाद्रंगी या जनपद कल्याणी था।
- 260 ई.पू. में अशोक ने कलिंग युद्ध लडा जिसमें बहुत नरसंहार हुआ।
- भारतीय इतिहास में अशोक पहला सम्राट है जिसने अपने संलेखों को पत्थरों पर अंकित करवाया।
- वह कंलिग में हुए नरसंहार से बहुत आहत हुआ एवं इस युद्ध के पश्चात उसने जीत के लिए युद्ध त्याग कर दिया।
- अब उसने शांतिवाद का मार्ग अपनाते हुए एक सच्चे सम्राट की तरह पूरे क्षेत्र पर शासन किया।
- उसने लुम्बिनी का भ्रमण किया, जो बुद्ध का जन्म स्थान था। उसने एक आदेश (फतवा) जारी किया जिसे रूमिनीदें स्तंभ फतवा कहा जाता है जिसमें लुम्बिनी के लोगों के लिए करों में कमी करने का आदेश था। लुम्बिनी शाक्यमुनि का जन्म स्थान हैं।

- अशोक के तीन पत्नियां थी जिनका नाम असंधीमित्र चारूवकी (कौखकी) एवं पद्मावती था।
- उसके चार पुत्र थे जिनका नाम महेंद्र, तिवार, कुनाल एवं जौलक था।
- उसके दो पुत्रियां भी थी जिनका नाम चारूमती एवं संघमित्रा था।
- महेंद्र एवं संघमित्रा ने बौद्ध धर्म को अपनाया एवं बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका का भ्रमण किया। 232 ई.पू. में अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश ज्यादा समय तक नहीं रहा। पूरा साम्राज्य पूर्व एवं पश्चिम दो भागों में विभाजित हो गया था। पूर्वी भाग अशोक के पौत्र दशरथ द्वारा संचालित किया गया।
- पश्चिमी भाग कुनाल द्वारा संचालित किया जा रहा था। वृहद्रथ मौर्य राजाऔं की श्रंखला में अंतिम राजा था। एवं जिसका वध स्वयं उसके मुख्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया गया।
अशोक के शिलालेख
- अशोक के शिलालेख भारत, नेपाल, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में पाये जाते है।
- ये लेख उप-महाद्वीप के कुछ भाग में प्राकृत भाषा एवं ब्रहमी लिपी में थे, परन्तु उत्तर पश्चिमी भाग में ये इब्रानी भाषा एवं खरोष्ठी लिपी में थे।
- अशाके के लेखों को चट्टानी शिला लेख (रॉक शिलालेख) एवं स्तंभशिलालेख में वर्गीकृत किया गया है।
- लगभग 400 ई.पू. में पणिनि ने अष्टाध्यायी लिखी जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित थी, परन्तु लिपी का सबसे पहले एवं वृहद स्तर पर उपयोग अशोक द्वारा अपने शिलालेखों के लिए किया गया था।
- अशोक नाम केवल माइ