Monday 22 January 2018

जैनधर्म से सम्बंधित


- जैनियो के अनुसार जैनधर्म की उत्पत्ति अति प्राचीन काल से पहले की है।
- जैनी धर्म 24 तीर्थंकर या अपने धर्म के विख्यात शिक्षकों में विश्वास रखते थे।
- ऋषभदेव को जैनधर्म का प्रथम तीर्थकर माना जाता है। इन्हे आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता था।
- 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ काशी के इक्शवाकू राजा अश्वसेना के पुत्र थे।
- ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि का वर्णन ऋग्वेद में भी किया गया है।
- वायुपुराण एवं भागवद् पुराण में ऋषभदेव को नारायण का अवतार बताया गया है।
- वर्धमान महावीर जैनियों के 24 वें तीर्थंकार थे।
- वर्धमान महावीर का जन्म वैशाली के समीप कुण्डग्राम नामक ग्राम में 540 ई.पू. हुआ था।
- इनके पिताजी सिद्धार्थ जंत्रिका कुल के मुखिया थे।
- इनकी माता त्रिशला वैशाली की एक लिच्छवी कुलीन महिला की बहन थी। बाद में चेतका की पुत्री का विवाह      मगध के राजा बिम्बिसार के साथ हुआ।
- इनका विवाह यशोदा के साथ हुआ एवं वे एक गृहस्थ जीवन जीने लगे।
- इनकी पुत्री का नाम अन्नोजा एवं दामाद का नाम जामेली था।
- 30 वर्ष की आयु में ये साधु बन गए।
- अगले 12 वर्षो में इन्होने कठोर तपस्या की।
- 13वें वर्ष 42 वर्ष की आयु में इन्हे कैवल्य प्राप्त हुआ। कैवल्य से तात्पर्य सर्वोच्च ज्ञान एवं सुख-दुख के बंधनो से मुक्त्िा। अत: इन्हे कैवलिन भी कहा गया था।
- वे कैवल्य के लिए वैशाली के समीप जाम्भिका ग्राम में ऋजुपालिका नदी के किनारे एक साल वृक्ष के नीचे बैठे गए।
- इन्हे जिन भी कहा जाता था अर्थात इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला एवं इनके अनुयायी ही जैन कहलाये गए।
- इन्होने अपने धर्म के विचार के लिए पावापुरी में एक जैन संघ की स्थापना की।
- 468 ई.पू. में 72 वर्ष की आयु में पावापुरी में इनका निधन हो गया।
1. जैन धर्म के पांच आधारभूत सत्य है वे हैं
- अंहिसा (जीवों को हानि न पहुंचाना)
- सत्य (सदैव सत्य बोलना)
- अस्तेय (चोरी न करना)
- अपरिग्रह (संपत्ति का संग्रहन न करना)
- ब्रहमचार्य (संयम या ब्रहम्चार्यता)
1. साधुओं के लिए ये पांच सत्य पंचमहाव्रत कहलाये गए एवं जन-साधारण के लिए पंचअनुव्रत।
2. जैन धर्म के त्रिरत्न हैं
- सम्यक् ज्ञान (उचित ज्ञान)
- सम्यक् विचार (उचित विचार)
- सम्यक् कर्म (उचित कार्य)
1. जैनधर्म के दर्शन को स्याद्वाद कहा गया, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘’हो सकता है का सिद्धात’’ इसका मानना है कि किसी भी प्रश्न का पूर्ण तरह उचित उत्तर नहीं है।
2. जैनधर्म के अनुसार सभी जगह आत्मा का निवास है यहां तक की पत्थरों, चट्टानों, जल आदि में भी ।
3. जैन धर्म के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति तभी संभव है जब व्यक्त्िा सभी संपत्तियों का त्याग करें, लंबे समय तक उपवास रखे, आत्म त्याग, शिक्षा चितंन, एवं तपस्या करे। अत: मोक्ष प्राप्त्िा के लिए तपस्वी जीवन आवश्यक है।
4. जैनधर्म के अनुसार सनातन संसार दु:खों एवं कष्टों से भरा हुआ है।
5. जैन धर्म के अनुसार ब्रहमाण्ड जीव (आत्मा) अजीव (भौतिक संरचनाएं) धर्म, अधर्म, कला एवं आकाश से मिलकर बना है।
6. जैनधर्म वर्ण व्यवस्था एवं आर्यन धर्म को नहीं मानता है।
7. जैनधर्म सरल एवं सादगीपसन्द जीवन का समर्थन करता है।
8. जैनधर्म ईश्वर में विश्वास नहीं रखता है।
9. सल्लेखना एक रूढि़वादी जैनी परम्परा है जिसमें एक व्यक्ति उपवास से स्वैच्छिक मृत्यु को स्वीकार करता है।
10 जैनधर्म के अनुसार ज्ञान के तीन स्त्रोत है यथा प्रत्यक्ष, अनुमान एवं तीर्थंकरो के प्रवचन।
- ऐसा माना जाता है कि महावीर की मृत्यु के 200 वर्ष बाद मगध में एक भयंकर अकाल पड़ा।
- उस समय चंद्रगुप्त मौर्य जैन समुदाय का राजा एवं भद्रबाहू समुदाय का मुखिया थे।
- चंद्रगुप्त एंव भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ कर्नाटक चले गए एवं स्थूलबाहू को मगध में बचे बाकी जैनियों का प्रभारी बना गए।
- जो जैनी लोग कर्नाटक गए वे दिगम्बर (जो नग्न अवस्था में रहते थे) कहलाए एवं मगध के बचे हुए जैनी लोग श्वेताम्बर (जो सफेद वस्त्र धारण करते थे) कहलाये।
- दिगम्बरों ने जैन धर्म के सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया जबकि श्वेताम्बर दृष्टिकोण से उदारवादी थे।
- जैन धर्म के कुछ संरक्षक (समर्थक) निम्न थे: चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग के खारवेल, दक्कन के राष्ट्रकूट, चामुण्डराय, गुजरात के सोलंकी शासक एवं इंद्र –IV (एक राष्ट्रकूट राजा)
- जैन साहित्य पहले प्राकृत में एवं बाद में संस्कृत में लिखा गया।

- पूर्व साहित्य पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका था। उत्तर साहित्य में 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 द्देदसूत्र एवं 4 मूलसूत्र थे।
- पूर्व, संख्या में 14 थे।
- कल्पसुत्र भद्रबाहू द्वारा लिखा गया था।
जैन संगीतियां
क्रमांक - वर्ष/स्थान - अध्यक्ष - परिणाम
प्रथम - 300 ई.पू. पाटलिपुत्र - स्थूल भद्र - जैनधर्म, श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दो समप्रदायों में विभाजित हुआ
द्वितीय - 6ठी शताब्दी ईसवी वल्लभी - देवर्धी क्षमा सरमन - 12 अंग एवं 12 उपांग का संकलन