Wednesday, 9 January 2019

डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जीवन परिचय / Biography of Dr. Rajendra Prasad

कार्यकाल- 26 जनवरी 1950 – 14 मई 1962
पूरा नाम- राजेंद्र प्रसाद महादेव सहाय
जन्म- 3 दिसंबर 1884
जन्मस्थान- जिरादेई (जि. सारन, बिहार)
पिता- महादेव
माता- कमलेश्वरी देवी
शिक्षा- 1907 में कोलकता विश्वविद्यालय से M.A., 1910 में बॅचलर ऑफ लॉ उत्तीर्ण, 1915 में मास्टर ऑफ लॉ उत्तीर्ण।
विवाह- राजबंस देवी के साथ
मृत्यु- 28 फ़रवरी 1963 (उम्र 78) पटना, बिहार, भारत

राजेन्द्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति है। उनका जीवन हमारा सार्वजनिक इतिहास है। वें सादगी, सेवा, त्याग और देशभक्ति के प्रतिमूर्ति थे। स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आपको पूरी तरह से होम कर देने वाले राजेंद्र बाबू अत्यंत सरल और गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे सभी वर्ग के लोगो से सामान्य व्यवहार रखते थे। लगभग 80 वर्षों के उनके प्रेरक जीवन के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दूसरे चरण को करीब से जानने का एक बेहतर माध्यम उनकी आत्मकथा है।

डॉ प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। उनके पूर्वज संयुक्त प्रांत के अमोढ़ा नाम की जगह से पहले बलिया और फिर बाद में सारन (बिहार) के जीरादेई आकर बसे थे। पिता महादेव सहाय की तीन बेटियां और दो बेटे थे, जिनमें वें सबसे छोटे थे। प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं के गांव जीरादेई में हुई। पढ़ाई की तरफ इनका रुझान बचपन से ही था। 1896 में वें जब पांचवी कक्षा में थे तब बारह वर्ष की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हुई। आगे पढाई के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय में आवेदन पत्र डाला जंहा उनका दाखिला हो गया और 30 रूपए महीने की छात्रवृत्ति मिलने लगी। उनके गांव से पहली बार किसी युवक ने कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी। जो निश्चित ही राजेंद्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी।

1902 में उन्होंने कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री पूरी की जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। इसके बाद पटना आकर वकालत करने लगे जिससे इन्हें बहुत धन ओर नाम मिला।

बिहार मे अंग्रेज सरकार के नील के खेत थे। सरकार अपने मजदूर को उचित वेतन नहीं देती थी। 1917 मे गांधीजी ने बिहार आकर इस समस्या को दूर करने की पहल की। उसी दौरान डॉ प्रसाद गांधीजी से मिले और उनकी विचारधारा प्रभावित हुए। 1919 मे पूरे भारत मे सविनय आन्दोलन की लहर थी। गांधीजी ने सभी स्कूल, सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील की। जिसके बाद डॉ प्रसाद ने अंपनी नौकरी छोड़ दी।

चम्पारण आंदोलन के दौरान राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के वफादार साथी बन गए थे। गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने अपने पुराने और रूढिवादी विचारधारा का त्याग कर दिया और एक नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। 1931 में काँग्रेस ने आन्दोलन छेड़ दिया। इस दौरान डॉ प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा। 1934 में उनको बम्बई काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। वे एक से अधिक बार अध्यक्ष बनाये गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान वे गिरिफ्तार हुए और नजर बंद कर दिए गए|

भले ही 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई लेकिन संविधान सभा का गठन उससे कुछ समय पहले ही कर लिया गया था जिसके अध्यक्ष डॉ प्रसाद चुने गए थे। संविधान पर हस्ताक्षर करके डॉ प्रसाद ने ही इसे मान्यता दी।

भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले वे एक मेधावी छात्र, जाने-माने वकील, आंदोलनकारी, संपादक, राष्ट्रिय नेता, तीन बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, भारत के खाद्य एवं कृषि मंत्री, और संविधान सभा के अध्यक्ष रह चुके थे। 26 जनवरी 1950 को भारत को डॉ राजेंद्र प्रसाद के रूप में प्रथम राष्ट्रपति मिल गया। 1962 तक वे इस सर्वोच्च पद पर विराजमान रहे। 1962 मे ही अपने पद को त्याग कर वे पटना चले गए ओर जन सेवा कर जीवन व्यतीत करने लगे।

1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से नवाजा गया।

1962 में अपने राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से नवाजा गया। 1921 से 1946 के दौरान राजनितिक सक्रियता के दिनों में राजेन्द्र प्रसाद पटना स्थित बिहार विद्यापीठ भवन में रहे थे। मरणोपरांत उसे 'राजेन्द्र प्रसाद संग्रहालय' बना दिया गया।

एक नजर में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जानकारी

  1. 1906 में राजेंद्र बाबु के पहल से ‘बिहारी क्लब’ स्थापन हुवा था। उसके सचिव बने।
  2. 1908 में राजेंद्र बाबु ने मुझफ्फरपुर के ब्राम्हण कॉलेज में अंग्रेजी विषय के अध्यापक की नौकरी मिलायी और कुछ समय वो उस कॉलेज के अध्यापक के पद पर रहे।
  3. 1909 में कोलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र इस विषय का उन्होंने अध्यापन किया।
  4. 1911 में राजेंद्र बाबु ने कोलकता उच्च न्यायालय में वकीली का व्यवसाय शुरु किया।
  5. 1914 में बिहार और बंगाल इन दो राज्ये में बाढ़ के वजह से हजारो लोगोंको बेघर होने की नौबत आयी। राजेंद्र बाबु ने दिन-रात एक करके बाढ़ पीड़ितों की मदत की।
  6. 1916 में उन्होंने पाटना उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
  7. 1917 में महात्मा गांधी चंपारन्य में सत्याग्रह गये ऐसा समझते ही राजेंद्र बाबु भी वहा गये और उस सत्याग्रह में शामिल हुये।
  8. 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में वो शामील हुये। इसी साल में उन्होंने ‘देश’ नाम का हिंदी भाषा में साप्ताहिक निकाला।
  9. 1921 में राजेंद्र बाबुने बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की।
  10. 1924 में पाटना महापालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
  11. 1928 में हॉलंड में ‘विश्व युवा शांति परिषद’ हुयी उसमे राजेंद्र बाबुने भारत की ओर से हिस्सा लिया और भाषण भी दिया।
  12. 1930 में अवज्ञा आंदोलन में ही उन्होंने हिस्सा लिया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जेल में बुरा भोजन खाने से उन्हें दमे का विकार हुवा। उसी समय बिहार में बड़ा भूकंप हुवा। खराब तबियत की वजह से उन्हें जेल से छोड़ा गया। भूकंप पीड़ितों को मदत के लिये उन्होंने ‘बिहार सेंट्रल टिलिफ’की कमेटी स्थापना की। उन्होंने उस समय 28 लाख रूपयोकी मदत इकठ्ठा करके भूकंप पीड़ितों में बाट दी।
  13. 1934 में मुबंई यहा के कॉग्रेस के अधिवेशन ने अध्यपद कार्य किया।
  14. 1936 में नागपूर यहा हुये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन के अध्यक्षपद पर भी कार्य किया।
  15. 1942 में ‘छोडो भारत’ आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।
  16. 1946 में पंडित नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार स्थापन हुवा। गांधीजी के आग्रह के कारन उन्होंने भोजन और कृषि विभाग का मंत्रीपद स्वीकार किया।
  17. 1947 में राष्ट्रिय कॉग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना गया। उसके पहले वो घटना समिती के अध्यक्ष बने। घटना समीति को कार्यवाही दो साल, ग्यारह महीने और अठरा दिन चलेगी। घटने का मसौदा बनाया। 26 नव्हंबर, 1949 को वो मंजूर हुवा और 26 जनवरी, 1950 को उसपर अमल किया गया। भारत प्रजासत्ताक राज्य बना। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने का सम्मान राजेन्द्रबाबू को मिला।
  18. 1950 से 1962 ऐसे बारा साल तक उनके पास राष्ट्रपती पद रहा। बाद में बाकि का जीवन उन्होंने स्थापना किये हुये पाटना के सदाकत आश्रम में गुजारा।
  19. पुरस्कार-1962 में ‘भारतरत्न’ ये सर्वोच्च भारतीय सम्मान उनको प्रदान किया गया।

No comments:

Post a Comment

Thanks For Your Feedback