Tuesday 24 July 2018

मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक संग्रहालय / Cultural Museum of Madhya Pradesh

स्थानीय संग्रहालय, भानपुरा (मंदसौर):-वर्ष 1958-59 में स्थापित पश्चिमी मालवा में स्थित भानपुरा संग्रहालय यशवंत राव होलकर प्रथम की छतरी परिसर में है। यहाँ भानपुरा व आसपास के क्षेत्र यथा गांधी सागर के डूब क्षेत्र एवं हिंगलाजगढ़ की कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है जो परमार कालीन मूतिर्यों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक संग्रहालय 

जिला पुरातत्व संग्रहालय, विदिशा:-
वर्ष 1940 में स्थापित इस संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाओं का संग्रह प्रमुख है। वैष्णव, शैव, शाक्त सम्प्रदायों की प्रतिमाओं के अतिरिक्त जैन प्रतिमाएँ भी उल्लेखनीय हैं। इनमें गुप्त शासक रामगुप्त के अभिलेख-युक्त उत्कीर्ण प्रतिमाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिससे गुप्त राजवंश के शासक रामगुप्त की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। पुरावस्तु वीथी में मोहनजोदड़ो एवं बेसनगर की उत्खनन सामग्री मुख्य आकर्षण है। दूसरी शती ईप़ू की यक्ष एवं यक्षी की प्रतिमाएँ भी अत्यंत महत्व की हैं।

महाराजा छत्रसाल संग्रहालय धुबेला (छतरपुर):-पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा वर्ष 1955 में लोकार्पित धुबेला संग्रहालय पाषाण प्रतिमाओं में योगिनी प्रतिमाओं का अनूठा संग्रह लिये हुये हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ पेंटिंग्स, अस्त्र-शस्त्र, शिलालेख एवं जैन प्रतिमाओं का संकलन एवं प्रदर्शन हुआ है। विविध प्रकार के दर्पणों को भी एक वीथी में प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय के संग्रह में करीब 2 हजार सिक्के भी सम्मिलित हैं।

जिला पुरातत्व संग्रहालय, राजगढ़:-वर्ष 1976 में स्थापित राजगढ़ संग्रहालय जिले में विशिष्ट कलाकृतियों को एकत्रित कर प्रदर्शित  किया गया है। संग्रह में अधिकांश प्रतिमाएँ हिन्दू व जैन धर्म की हैं। इनमें शैव व शाक्त प्रतिमाओं का बाहुल्य है। यहाँ की कलाकृतियां इस क्षेत्र में विकसित कला को व्यक्त करने में सक्षम हैं। यहाँ कुछ तांबे के सिक्कों का संकलन भी है।

तुलसी संग्रहालय, रामवन (सतना):-वर्ष 1978 में स्थापित रामवन संग्रहालय भरहुत के पुरावशेषों के संकलन में देश में तीसरा स्थान रखता है। गुप्तकालीन प्रतिमाओं का अनूठा संकलन व प्रदर्शन यहाँ हुआ है। यहाँ की प्रतिमाएँ मौर्य युग से 18-19वीं शती के मध्य की हैं। भरहुत के कुछ शिलापट्टों पर जातक कथाओं का अंकन है। जैन, वैष्णव, शैव एवं शाक्त प्रतिमाओं का अच्छा संकलन यहाँ है। लगभग 2500 हस्त लिखित ग्रन्थों का भण्डार जिसमें 6-7 सचित्र हस्तलिखित ग्रन्थ भी हैं। इसके अतिरिक्त देशी-विदेशी डाक टिकिटों एवं देश के विद्वानों, महापुरुषों, विचारकों के हस्ताक्षरों का अनूठा संकलन भी है।*

जिला पुरातत्व संग्रहालय, मण्डला:-वर्ष 1979 में स्थापित मण्डला संग्रहालय में मुख्यत: पाषाण प्रतिमाओं के संकलन के अतिरिक्त जीवाश्मों का सुंदर संग्रह है। यहाँ लगभग 175 जीवाश्म प्रदशिर्त हैं। हस्तलिखित ग्रन्थ, सिक्के व मृण्मय प्रतिमाएँ भी संग्रहालय में संग्रहित हैं।

जिला पुरातत्व संग्रहालय, शहडोल:-वर्ष 1983 में स्थापित शहडोल संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाओं का संकलन है। इनमें वैष्णव, शैव एवं देवी प्रतिमाओं की प्रमुखता है।

जिला पुरातत्व संग्रहालय, होशंगाबाद:-वर्ष 1984 में स्थापित होशंगाबाद संग्रहालय में मुख्यत: परमार कालीन वैष्णव, शैव, जैन प्रतिमाएँ संग्रहित हैं। इसके अतिरिक्त होशंगाबाद जिले के खेड़ीनेमा में वर्ष 1994 में हुये उत्खनन की पुरावस्तुएँ भी संग्रहित हैं। इस संग्रहालय की महत्वपूर्ण सामग्री हाथी दाँत के जीवाश्म हैं।

जिला पुरातत्व संग्रहालय, पन्ना:-वर्ष 1988 में स्थापित पन्ना संग्रहालय में गुप्त, चंदेल एवं कलचुरी काल की पाषाण प्रतिमाएँ प्रदर्शित  हैं। इसके अतिरिक्त कुछ चांदी एवं तांबे के सिक्कों का भी संकलन है।*

जिला पुरातत्व संग्रहालय, देवास:-वर्ष 1988 में स्थापित देवास संग्रहालय में शैव, शाक्त, वैष्णव एवं जैन प्रतिमाएं प्रमुख हैं। स्थानीय मराठा हवेलियों की कुछ काष्ठ कलाकृतियों को भी यहां प्रदर्शित  किया गया है।*

जिला पुरातत्व संग्रहालय, रीवा:-वर्ष 1988 में स्थापित रीवा संग्रहालय में कलचुरी शासकों के महत्वपूर्ण कला केन्द्र गुगीर् एवं आस-पास की प्रतिमाएँ प्रमुखता से हैं। शेष विन्ध्य क्षेत्र की प्रतिमाओं को यहाँ प्रदर्शित  किया गया है।

जहाँगीर महल संग्रहालय, ओरछा (टीकमगढ़):-वर्ष 1990 में स्थापित ओरछा संग्रहालय में स्थानीय एवं आसपास की पाषाण प्रतिमाओं, सती स्तंभों, शिलालेखों आदि के संग्रह को सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित  किया गया है।


यशोधर्मन संग्रहालय, मंदसौर:- वर्ष 1982-83 में स्थापित हुये इस संग्रहालय का वर्ष 1997 में नये भवन में लोकार्पण हुआ। इस संग्रहालय में मंदसौर जिले के विविध स्थलों से प्राप्त शैव, वैष्णव, देवी, जैन सम्प्रदायों से संबंधित प्रतिमाओं को प्रदर्शित  किया गया है। इन प्रतिमाओं में सप्तमातृका, अम्बिका, चामुण्डा, हारीति आदि अद्वितीय हैं। ये प्रतिमाएँ 6वीं शती ई. से 14वीं शती ई. तक की हैं।

स्थानीय संग्रहालय, गंधर्वपुरी (देवास):-वर्ष 1964 में स्थापित गंधर्वपुरी संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाओं का संकलन है जो परमार कालीन शैव, वैष्णव, देवी एवं जैन धर्म से संबंधित हैं।

स्थानीय संग्रहालय, आशापुरी (रायसेन):-वर्ष 1965-66 में स्थापित आशापुरी संग्रहालय में आशापुरी ग्राम के विविध स्थलों से संग्रहित प्रतिमाओं का सुन्दर संग्रह है। ये प्रतिमाएं अपनी कला एवं सम्पूर्णता के लिये परमार कला की अनूठी उपलब्धि है।

स्थानीय संग्रहालय, पिछोर (ग्वालियर):-वर्ष 1977 में स्थापित पिछोर संग्रहालय में क्षेत्र की पाषाण प्रतिमाओं का सुंदर संग्रह है जो क्षेत्रीय कला का दिग्दर्शन कराती है।